चीनी युवाओं में बढ़ती गाँधी साहित्य की लोकप्रियता

मार्टिन लूथर किंग, जेम्स लॉसन, नेल्सन मंडेला, बराक ओबामा, आंग सान सू ची, अलबर्ट आइंस्टाइन, जॉन लेनन और अल गोर, इन सब व्यक्तियों में एक बात समान है. इन सभी को महात्मा गांधी के जीवन और विचारों ने प्रेरित किया है.
समय के चलते जहाँ कई विचारक गांधी की घटती महिमा की चर्चा कर रहे थे, वहीं आज गांधी पहले से ज़्यादा लोकप्रिय होते जा रहे हैं. कुछ ऐसा ही हो रहा है चीन में. माओ के गढ़ में आज गांधी को पढ़ने वाले और उनके बारे में जानने की इच्छा रखने वालों की तादाद बढ़ती जा रही है. गांधी खुद चीन जाने की इच्छा रखते थे लेकिन उन दिनों वहां के हालात ने उन्हें रोक दिया.


आज गांधी चीन की सभी इतिहास की किताबों में पढ़ाए जाते हैं. पिछले साल ही शंघाई की फुडान यूनिवर्सिटी ने भारत सरकार को लिखा था कि वो उनके साथ मिलकर यूनिवर्सिटी में एक गांधी सेंटर खोलना चाहते हैं ताकि उनके छात्रों को महात्मा गांधी और भारत के बारे में और अधिक जानकारी मिल सके.लेकिन अभी हाल ही में एक चीनी प्रोफेसर ने नवजीवन ट्रस्ट से महात्मा गांधी की चुनिंदा रचनाओं को चीनी भाषा मंदारिन में अनुवाद करने और छापने की अनुमति मांगी है. वे चाहते हैं कि गांधी और उनके विचार चीन के कोने-कोने तक पहुँचे. नवजीवन ट्रस्ट की स्थापना गांधी ने ही की थी.

गांधी और माओ

लेकिन आज क्या हो रहा है चीन में जो लोग गांधी को याद कर रहे हैं? साउथ चीन नॉर्मल यूनिवर्सिटी विदेशी अध्ययन विभाग के प्रोफेसर शांग क्वानयू गांधी पर शोध कर रहे हैं.
वे कहते हैं, "साल 1920 में गांधी जी के असहयोग आंदोलन और लोगों को जुटाने की उनकी क्षमता ने चीनी शासन का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया था. साल 1950 तक उन पर 27 किताबें और कई सारे लेख प्रकाशित हुए. पत्रिकाओं में उन्हें रूसो और भारत के टॉलस्टाय के रूप में वर्णित किया गया है."
माओ के विचार के बढ़ते असर पर प्रोफेसर शांग कहते हैं, "गांधी के अध्ययन और उन पर लिखे गए लेखों में काफी गिरावट आई क्योंकि गांधी अहिंसा और सद्भाव की वकालत करते थे जो माओ की विचारधारा और उन दिनों चीन के अंदर चल रहे राजनीतिक माहौल से बिलकुल अलग था."
पूर्व भारतीय राजनयिक और गांधीवादी पास्कल एलन नज़ारेथ ने बीबीसी से कहा, "माओ के चीन में विफल होने से पहले कई चीनी विचारक गांधी जी से मिले थे और उनसे चीन की समस्याओं की चर्चा करते थे. आज माओ के बाद लोग चीन में एक बार फिर गांधी की ओर देख रहे हैं."

चीन में सत्याग्रह

सन यात सेन यूनिवर्सिटी के डॉक्टर हुआंग यिंगहोंग ने गांधी की लिखी किताबों, पत्रों और उनके भाषणों का मंदारिन में अनुवाद करने का बीड़ा उठाया है. वह कुछ दिनों पहले अहमदाबाद स्थित नवजीवन ट्रस्ट के अधिकारियों से मिले और उनसे गांधी की चुनिंदा रचनाओं को चीनी भाषा में छापने की अनुमति मांगी.
प्रोफेसर यिंगहोंग ने बताया, "हम गांधी की कुछ चुनी हुई रचनाओं का पाँच खंडों का अनुवाद करेंगे जिसमें उनकी आत्मकथा, 'सत्याग्रह इन साउथ अफ्रीका', 'नैतिक धर्म' और 'गीता पर प्रवचन' शामिल हैं.
किताबों के साथ-साथ रवीन्द्रनाथ टैगोर, सरदार पटेल, ब्रिटिश सरकार के अधिकारियों को और कई अन्य लोगों को लिखे गांधी जी के पत्रों में से कुछ का और उनके 81 भाषणों का भी हम मंदारिन में अनुवाद करेंगे."


प्रोफेसर कहते हैं कि चीनी भाषा में उपलब्ध गांधी साहित्य में युवाओं को विशेष दिलचस्पी है. हम इस साल के अंत तक इन अनुवादित खंडों का प्रकाशन कर देंगे.