आमिर और अमर्त्य को जोड़ता 'सरोकार'

आमिर ख़ान
बॉलीवुड अभिनेता आमिर ख़ान और नोबेल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन में एक बात समान है और वो यह है कि दोनों मृत्युदंड के ख़िलाफ़ हैं.
आमिर और अमर्त्य ही नहीं बल्कि सामाजिक कार्यकर्ता अरुणा राय, गीतकार जावेद अख़्तर, लेखक अमितावा घोष, इंफ़ोसिस के संस्थापक एन आर नारायणमूर्ति और लेखक विक्रम सेठ जैसी कई जानी मानी हस्तियों ने मौत की सज़ा का विरोध किया है.


बयान में कहा गया है कि इस सज़ा से कोई 'उद्देश्य पूरा नहीं होता' और यह अपराध को रोक पाने के मामले में नाकाम रही है.इन हस्तियों ने एक बयान में मृत्युदंड को 'क्रूर और बर्बर' बताते हुए कहा है कि एक सभ्य मानवीय समाज में इसका कोई स्थान नहीं है.
उन्होंने कहा कि मृत्युदंड का फ़ैसला मनमाने और अनुचित तरीक़े से सुनाया जाता है और इसके शिकार ज़्यादातर ग़रीब लोग होते हैं.
साथ ही कहा कि फांसी पर लटकाए जाने के बाद व्यक्ति की ज़िन्दगी वापस नहीं लाई जा सकती है इसलिए एक ऐसी क़ानूनी व्यवस्था में जहां फैसला सुनाने में भूल-चूक की आशंका हो, फांसी की सज़ा का प्रावधान नहीं किया जा सकता.

हस्ताक्षर

इस बयान में कहा गया है कि दुनियाभर मे मृत्युदंड को समाप्त करने के लिए मुहिम चलाई जा रही है और 70% से ज़्यादा देश इसे समाप्त कर चुके हैं.
"किसी एक की जान जाने से जो हानि हुई है उसकी भरपाई के लिए एक और की जान लेना एक ग़लत और ख़तरनाक किस्म के नैतिक तर्क को बढ़ावा देना है. मृत्युदंड की धारणा बुनियादी तौर पर गड़बड़ है"
अमर्त्य सेन, नोबेल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री
बयान पर हस्ताक्षर करने वालों में क्लिक करेंआमिर और अमर्त्य सहित कई वकील, कलाकार, अर्थशास्त्री, लेखक तथा नागरिक शामिल हैं.
अमर्त्य सेन ने अलग से एक बयान में कहा, “चूंकि सारी जिन्दगी मैं मौत की सज़ा को ख़त्म करने के लिए प्रतिबद्ध रहा हूं इसलिए जो लोग इस इसे ख़त्म होते देखना चाहते हैं मैं उनकी आवाज़ में अपनी आवाज़ मिलाकर खुश हूं.”
देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित क्लिक करेंअमर्त्य सेन ने कहा, “किसी एक की जान जाने से जो हानि हुई है उसकी भरपाई के लिए एक और की जान लेना एक ग़लत और ख़तरनाक किस्म के नैतिक तर्क को बढ़ावा देना है. मृत्युदंड की धारणा बुनियादी तौर पर गड़बड़ है.”

बहस

देश में पिछले कई दिनों से मौत की सज़ा दिए जाने पर बहस जारी रही है.
उच्चतम न्यायालय ने गत 21 जनवरी को क्लिक करें15 दोषियों की मौत की सज़ा को उम्र क़ैद में बदलने का आदेश दिया था. इनकी दया याचिकाओं के मामले राष्ट्रपति के सामने बहुत समय से लंबित पड़े हुए थे.
न्यायालय ने अपने आदेश में कहा है कि याचिकाओं के निपटारे में हुई लंबी देरी उन्हें राहत दिए जाने का पर्याप्त आधार है.
ग़ौरतलब है कि वर्ष 2004 से 2012 तक भारत में किसी मुजरिम को फ़ांसी नहीं दी गई थी. लेकिन नवंबर 2012 में मुंबई हमलों के दोषी अजमल कसाब और फिर फ़रवरी 2013 में संसद पर हमले के दोषी अफ़ज़ल गुरु को फांसी दी गई थी.

रोक

अमर्त्य सेन

अमर्त्य सेन का कहना है कि मृत्युदंड की धारणा बुनियादी तौर पर गड़बड़ है.
उच्चतम न्यायालय ने 1993 में दिल्ली में हुए बम धमाके के दोषी देवेंदर पाल सिंह भुल्लर की क्लिक करेंफांसी की सज़ा पर अगले आदेश तक रोक लगा रखी है. इस मामले की अगली सुनवाई 19 फ़रवरी को होनी है.
वर्ष 2011 से भुल्लर का दिल्ली के एक मनोचिकित्सा संस्थान में इलाज चल रहा है. उनके वकील केटीएस तुलसी ने भुल्लर की मानसिक हालत के आधार पर मौत की सज़ा माफ़ करने की मांग की है.
उच्चतम न्यायालय ने पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या के दोषियों की मौत की सज़ा कम करने संबंधी याचिका पर फ़ैसला सुरक्षित रखा है.


हालांकि केंद्र सरकार ने इस याचिका का ये कहते हुए विरोध किया है कि दया याचिका लंबित रहने के दौरान इन दोषियों को किसी तरह की प्रताड़ना या अमानवीय बर्ताव का सामना नहीं करना पड़ा

चीनी युवाओं में बढ़ती गाँधी साहित्य की लोकप्रियता

मार्टिन लूथर किंग, जेम्स लॉसन, नेल्सन मंडेला, बराक ओबामा, आंग सान सू ची, अलबर्ट आइंस्टाइन, जॉन लेनन और अल गोर, इन सब व्यक्तियों में एक बात समान है. इन सभी को महात्मा गांधी के जीवन और विचारों ने प्रेरित किया है.
समय के चलते जहाँ कई विचारक गांधी की घटती महिमा की चर्चा कर रहे थे, वहीं आज गांधी पहले से ज़्यादा लोकप्रिय होते जा रहे हैं. कुछ ऐसा ही हो रहा है चीन में. माओ के गढ़ में आज गांधी को पढ़ने वाले और उनके बारे में जानने की इच्छा रखने वालों की तादाद बढ़ती जा रही है. गांधी खुद चीन जाने की इच्छा रखते थे लेकिन उन दिनों वहां के हालात ने उन्हें रोक दिया.


आज गांधी चीन की सभी इतिहास की किताबों में पढ़ाए जाते हैं. पिछले साल ही शंघाई की फुडान यूनिवर्सिटी ने भारत सरकार को लिखा था कि वो उनके साथ मिलकर यूनिवर्सिटी में एक गांधी सेंटर खोलना चाहते हैं ताकि उनके छात्रों को महात्मा गांधी और भारत के बारे में और अधिक जानकारी मिल सके.लेकिन अभी हाल ही में एक चीनी प्रोफेसर ने नवजीवन ट्रस्ट से महात्मा गांधी की चुनिंदा रचनाओं को चीनी भाषा मंदारिन में अनुवाद करने और छापने की अनुमति मांगी है. वे चाहते हैं कि गांधी और उनके विचार चीन के कोने-कोने तक पहुँचे. नवजीवन ट्रस्ट की स्थापना गांधी ने ही की थी.

गांधी और माओ

लेकिन आज क्या हो रहा है चीन में जो लोग गांधी को याद कर रहे हैं? साउथ चीन नॉर्मल यूनिवर्सिटी विदेशी अध्ययन विभाग के प्रोफेसर शांग क्वानयू गांधी पर शोध कर रहे हैं.
वे कहते हैं, "साल 1920 में गांधी जी के असहयोग आंदोलन और लोगों को जुटाने की उनकी क्षमता ने चीनी शासन का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया था. साल 1950 तक उन पर 27 किताबें और कई सारे लेख प्रकाशित हुए. पत्रिकाओं में उन्हें रूसो और भारत के टॉलस्टाय के रूप में वर्णित किया गया है."
माओ के विचार के बढ़ते असर पर प्रोफेसर शांग कहते हैं, "गांधी के अध्ययन और उन पर लिखे गए लेखों में काफी गिरावट आई क्योंकि गांधी अहिंसा और सद्भाव की वकालत करते थे जो माओ की विचारधारा और उन दिनों चीन के अंदर चल रहे राजनीतिक माहौल से बिलकुल अलग था."
पूर्व भारतीय राजनयिक और गांधीवादी पास्कल एलन नज़ारेथ ने बीबीसी से कहा, "माओ के चीन में विफल होने से पहले कई चीनी विचारक गांधी जी से मिले थे और उनसे चीन की समस्याओं की चर्चा करते थे. आज माओ के बाद लोग चीन में एक बार फिर गांधी की ओर देख रहे हैं."

चीन में सत्याग्रह

सन यात सेन यूनिवर्सिटी के डॉक्टर हुआंग यिंगहोंग ने गांधी की लिखी किताबों, पत्रों और उनके भाषणों का मंदारिन में अनुवाद करने का बीड़ा उठाया है. वह कुछ दिनों पहले अहमदाबाद स्थित नवजीवन ट्रस्ट के अधिकारियों से मिले और उनसे गांधी की चुनिंदा रचनाओं को चीनी भाषा में छापने की अनुमति मांगी.
प्रोफेसर यिंगहोंग ने बताया, "हम गांधी की कुछ चुनी हुई रचनाओं का पाँच खंडों का अनुवाद करेंगे जिसमें उनकी आत्मकथा, 'सत्याग्रह इन साउथ अफ्रीका', 'नैतिक धर्म' और 'गीता पर प्रवचन' शामिल हैं.
किताबों के साथ-साथ रवीन्द्रनाथ टैगोर, सरदार पटेल, ब्रिटिश सरकार के अधिकारियों को और कई अन्य लोगों को लिखे गांधी जी के पत्रों में से कुछ का और उनके 81 भाषणों का भी हम मंदारिन में अनुवाद करेंगे."


प्रोफेसर कहते हैं कि चीनी भाषा में उपलब्ध गांधी साहित्य में युवाओं को विशेष दिलचस्पी है. हम इस साल के अंत तक इन अनुवादित खंडों का प्रकाशन कर देंगे.

प्रशंसित लोगों के टॉप टेन में चार भारतीय

एक सर्वे में दुनिया के जीवित 10 सबसे प्रशंसनीय लोगों की सूची में चाल भारतीय सचिन तेंदुलकर, नरेंद्र मोदी, अमिताभ बच्चन और अब्दुल कलाम शामिल हैं.
यह सर्वेक्षण ब्रितानी अख़बार टाइम्स के लिए क्लिक करेंयूगव ने किया है.
वहीं क्लिक करेंइस सूची में अन्ना हज़ारे इस सूची में 14वें स्थान पर और अरविंद केजरीवाल 18वें स्थान पर हैं. भारतीय उद्योगपति रतन टाटा सूची में तीसवें स्थान पर हैं.
सर्वे के मुताबिक माइक्रोसॉफ्ट कम्पनी के संस्थापक बिल गेट्स दुनिया के सबसे पसंदीदा जीवित व्यक्ति हैं. अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा दूसरे स्थान पर हैं. इस सर्वेक्षण में दुनिया के 13 देशों के लगभग 14,000 लोगों ने हिस्सा लिया .

वाईओयूजीओवी की सूची

  1. बिल गेट्स
  2. बराक ओबामा
  3. व्लादिमीर पुतिन
  4. पोप फ्रांसिस
  5. सचिन तेंदुलकर
  6. शी जिनपिंग
  7. नरेंद्र मोदी
  8. वारेन बफ़ेट
  9. अमिताभ बच्चन
  10. अब्दुल कलाम
सर्वे के बाद जारी की गई सूची के अनुसार बिल गेट्स 10.10 प्रतिशत लेकर पहले स्थान पर रहे. ओबामा 9.27 प्रतिशत वोट लेकर दूसरे जबकि रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन 3.84 प्रतिशत के साथ तीसरे स्थान पर रहे.
रोमन कैथोलिक ईसाइयों के शीर्ष धर्मगुरु पोप फ्रांसिस 3.43 प्रतिशत वोटों के साथ चौथे स्थान पर रहे.

मोदी 7वें स्थान पर

भारत के पूर्व क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर 3.28 प्रतिशत वोट हासिल कर पांचवें स्थान पर हैं. इस सूची में चीन के राष्ट्रपति शी जिंपिन 2.86 प्रतिशत वोट लेकर छठे स्थान पर रहे.
सर्वेक्षण के अनुसार भारत में विपक्षी भारतीय जनता पार्टी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी 2.55 प्रतिशत वोट लेकर सातवें जबकि प्रसिद्ध अभिनेता अमिताभ बच्चन 2.01 प्रतिशत मतों के साथ नौवें स्थान पर रहे. भारत के पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम सूची में दसवें पायदान पर हैं.
पाकिस्तान के पूर्व क्रिकेटर और तहरीक इंसाफ पार्टी के अध्यक्ष इमरान खान 0.95 प्रतिशत वोट लेकर बारहवें स्थान पर रहे.
अमरीका में पोप फ्रांसिस राष्ट्रपति ओबामा से दोगुनी संख्या में वोट लेकर सबसे पसंदीदा व्यक्ति रहे. बिल गेट्स को चीन में सबसे अधिक वोट मिले.

कंपनी का कहना है कि इस शोध से पता चलता है कि अगर यह सर्वेक्षण एक महीने पहले किया गया होता तो नेल्सन मंडेला इस सूची में शीर्ष पर रहते.